दोषी कौन सजा किसे और कैसी?
रविवार रात को
चलती बस में
पैरामैडिकल की छात्र
के साथ सामूहिक
दुश्कर्म से सारा
देश आक्रोशित है
आज घटना के
प्रति आक्रोश का तीसरा दिन था,
घटना के पहले
दिन से शायद
लोगों में इतना
गुस्सा था जो
दूसरे और तीसरे दिन अपने
पूरे शबाब में
था। जो कुछ
हुआ वो सब
को मालूम है
में असल मुद्दे
की ओर इस
लेख को ले
जाना चाहूंगा कि
बार बार ऐसा
क्यों तो मेरा
जबाब भी तमाम
आम एक आम
आदमी होने के
नाते होगा कि
दरअसल कोई मजबूत
कानून का प्रावधान
इस देश में
है ही नहीं
इस भर्त्सन जुर्म
के लिए।
देश की जनता
में आक्रोश का
न जाने कहां
से आता है
और न जाने
कहां चला जाता
है कि बिना
किसी नतीजें के
हम शांत हो
जातें है तभ
ही शायद कोई
मजबूत कानून भारत
देश आज तक
नहीं है जिसके
लिए हम मोमबत्ती
हाथों में लिए
प्रदर्शन कदमताल करते है
शायद हम यह
भूल जाते है
इसदेश में
गवर्नेंस का मतलब
केवल शासन होता
है ।
किसी भी घटना
के प्रति देश
में दो-चार
दिनों तक ही
आंच होती है
और सप्ताह, आठ
और नौ दिन
बाद न आग
होती है और
न ही आंच।
सब कुछ सामान्य
बिकुल शांत और
कुछ दिनों बाद
वहीं दूसरी वारदात
आज किसी दूसरे
शहर में और
शायद उसकें कुछ
दिनों बाद उसी
शहर में जिस
शहर के लोग
केवल मोमबत्ती लेके
प्रदर्शन करना जानते
हो। शायद अगर
मैं न भूला
हूं तो चोट
में दर्द सबको
होता पर अपने
भविष्य के लिए
बुरा भला कोई
कैसे सोच सकता
है हमें मजबूत
कानून की क्या
जरूरत हमारे संग
थोडे ऐसे होना
है। ऐसा क्यों
कब तक हर
घटित होने वाले
ऐसे घटनाओं के
लिए हम मोमबत्ती
लेके प्रदर्शन करगें,
और कब इन
मोमबत्ती विरोध प्रदर्शन के
स्वर हमारे हुक्मरानों
के कानें पर
पड़ेगा।
आज तक कितने
ऐसे मौकों पर
हमारे देश के
लोकतात्रिक शासकों ने मोमबत्ती
लेकर विरोध प्रदर्शन
करने पर गौर
कर कानूनों को
हरी झड़ी दी
है जो इस
देश की आम
जनता ने मांग
की अपने लोकतांत्रिक
शासक से।
मीडिया का स्टेंड
बहूत महत्वपूर्ण हो
जाता है, उस
देश के लिए
जहां विश्व की
सबसे बड़ी लोकतात्रिक
व्यवस्ता हों। मिडिया
जहां चौथा स्तंभ
का दर्जा लिए
हो। लोकतात्रिक शासक
अपने परम मित्र
जैसा कि बताया
चौथा स्तम्भ मिडिया
से दूरी बनाए
हुए है। देश
के लिए इससे
बुरा कुछ नहीं
वो भी विश्व
के सबसे बढे़
लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश
के शासक कानून
बनाने में कतरा
रहे है। देश
को जबाब देने
के बजाए देश
के हुक्कमरान पिडिता
से मिल उचित
कार्यवायी का भरोसा
देने के साथ
दोषी को कड़ी
सजा दिलवाने का
वादा तक नहीं
कर सकतें और
कानून बना नहीं
सकतें हाय रे!
मजबूरी।
पीड़ित परिवार से मिल
के सांत्वना देने
के बजाय कठोर
कानून की है
जरूरत पीडित परिवार
के बजाय देश
को उत्तर दे
शासक कि और
कब कत देश
देश की मां
बेटियां असुरक्षित रहेंगी इस
देश में। इस
भर्त्सन घटना के
प्रति देश को
कठोर कानून की
जरूरत है राजनीति
की नहीं देश
के कुछ राजनीतिक
दलों ने सुर्खियां
बटोरने के लिए
जो कुछ कदम
उठाएं है वो
कहां तक उचित
है क्या वे
देश या अपने
स्वयं के राज्य
के हर पीडित
का खर्च एंव
नौकरी देगें पर
देश तो अपनें
शासकों से केवल
एक मजबूत कानून
की आस कर
रहा हैं।
बेहद शर्मिंदगी भरी करतूत
के सजा हमारे
देश में केवल
सात साल है।
समय समय में
इस कानून में
बदलाव के की
मांग हूयी है।
पर मांगों पर
किसी ने भी
ध्यान नहीं दिया
गया। क्या इसका
कारण ये हैं
हमारे देश के
हुक्कमरान और उनसे
परिवारजन सुरक्षित हैं? मै
पूछना चाहूंगा देश
के उन शख्सियतों
देश के शासक
जिन्हें चुन के
शासन व्यवस्था में
लाते है, क्या
ऐसे देश चलेगा?
और चलेगा तो
कैसें? आप देश
को ऐसे अपराधियों
को कठोर सजा
देने का विश्वास
नहीं दे सकतें जिसके
विरोंध में देश
एक साथ हो
के विरोध प्रदर्शन
करता है, देश
चाहता है एक
ऐसे कानून को
जिससे ऐसे अपराध
भविष्य में न
हों । आप
देश को कानून
तो नहीं देते
और न जबाव
देते लेकिन भर्त्सन
अपराध पर राजनीति
करना नहीं भूलते
क्या ऐसे देश
चलेगा?
आज 63 वर्षों बाद देश
को इस गम्भीर
मसलें पर एक
कड़ें कानून की
जरूरत है जहां
देश की राजधानी
में ही एक
वर्ष में लगभग
600 दुष्कर्म हो रहें
हो ऐसे आवश्यकता
होती है एक
मजबूत कानून की
जो जुर्म से
पूर्व की ऐसे
विकृत मनुष्यों की
रूह कंपा दें, जो इसे अंजाम दे रहे होते है।
चारों ओर होते
विरोध प्रदर्शन और
कडे कानून की
मांग को अनदेखा
किया जाता है
तो लगता है
कि दोषी है
खुद ही है
हमने स्वयं अपने
लिए कुछ ऐसे
लोगों को सत्ता
सौंप दी है
जो शायद हमारे
बहु, बेटियों को
सुरक्षा देने में
असर्मथ है ये
लोग हमारी सुरक्षा
के विषय का
राजनीतिकरण करके उसकी
कि राजनीति कर
फिर से शासन
करने के आदेश
मांगने को हमारे
सासने वोट मागने
को तैयार होंगें
ऐसे में दोषी
कौन और सजा
किसे कितनी और
क्या मिलें?
1 comment:
bahut khub!
Post a Comment