Sunday 14 October 2012

परिभाषाएं गढ़ने से ही बनती हैं


परिभाषाएं गढ़ने से ही बनती हैं

 यूहीं बहुत दिनों से बैठा सोच रहा था कि कल्पनाओं को कैसे कागज पर उतारूं जो कि मुझे मेरे  अकेलेपन के साथ को तोड़ रही थीं। कुछ महिनों के पश्चात् दिल्ली में ठिकाना बदलने का दिन फिर आ गया था, अब तक बारह मास के दिल्ली मेरे नौंवी बार ठिकाना बदल रहा था। हर एक जगह से एक खास लगाव हो रहा चुका था, शायद इसी लिए हर बार मुझे लगता कि कुछ तो रह गया है और मेरा अकेलापन इसके खिलाफत करता मेरा दोस्त। अंधरे कमरे में किसी साए के होने के एहसास मात्र से मेरी कलम कागज से  दुर होने लगती है ऐसा क्यों में नहीं जानता... शायद साहित्य एकांतपसंद हो।
मैं नहीं जानता लोग मुझे कितना पसंद करते है। मेरे एहसासों से मुझे तो यही लगता है कि कम से कम मेरे परस्पर के लोग तो शायद मुझे पसंद करते हो। एहसासों की डोर हमारे हर रिस्तें को संजोए हुए रखती है। प्राकृतिक एहसास रखें तो रिस्तें सरल होते है मेरे मायनों से रिस्तें सरल ही होने चाहिए क्योंकि अप्राकृतिक कुछ भी हो वो जटिल होता है और जटिल कभी भी सरल नहीं होता है और सरल ही हमारे ज्यादा करीब होता है चाहें कुछ हो।
कभी कभी हम कुछ चीजों को ऐसे अपना लेते है कि वो हमारे दिल में एक ठहरी तस्वीर के रुप में बस जाती है। दरअसल तस्वीर को हम उस समय अपनें में अपना रहें होते हैं जब तस्वीर के रंग हमारे अपनें रंगों से रंगें होते है। और हमसें थोड़े ही करीब होती है जिसका हमें इंतजार होता है और हम उसी लम्हें को बार बार  जीना चाह रहें होते है और समय को थाम उस ठहरी तस्वीर को दिल में उतार लेते हैं जो दरअसल हमारे करीब होती ही नहीं हैं, असल में हम चाहतें है इसीलिए हम उसे अप्राकृतिक तौर पर अपने करीब ला चुके होते है और प्राकृतिक रुप से जो हमारे करीब नहीं है पर अप्राकृतिक तौर  पर हम उसके करीब हो चुके होते है। और ये आपसी सम्बंध जटिल होते हैं। क्योंकि ठहरे हूई चीज का कोई अस्तित्व मेरी नजर  में तो नहीं है। जब किसी उजले प्रकाश के समांतर हम  अपनी नजरें ठहरा देते है तो  कुछ समय के बाद उजला धुंधला हो जाता है और उस नजर  के लिए उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। अगर अस्तित्व समाप्त न हुआ होता तो हमें पलकें झपकानें  की जरूरत न होती स्पष्टतया कुछ और देखने के लिए।
सफेद रंग में थोड़ा भी अगर काला रंग मिला दिया जाएं तो रंग सफेद रंग उजला नहीं रहता है श्याम रंग की एक तह की झलक उसमें दिखाई देती हैं और काले रंग को उजला करने के लिए थोड़ें उजलें की नहीं बल्कि बहुत सारे उजलें की जरूरत होती है। रिस्तें केवल एक बार बनते फिर तो रिस्तें में विश्वास बहाली ही होती है और शायद कुछ नहीं। रिस्तें एहसासों के मेल से बनतें है कोई पास होकर भी दिल के करीब नहीं होता कोई कोसों दुर रह कर भी दिल के करीब रहता है।
परिभाषा हर किसी वस्तु के उपयोग को सरल बनाती है और रिस्तें को और भी करीब ले के आती है, और भी मजबूत बनाती है। किसी भी वस्तु का उपयोग यूं ही सरल  नहीं होता रिस्तें यूं ही करीब नही आते है और परिभाषा गढ़ने से बनती है ऐसे ही कोई करीब या सरल नही होता है।

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